काशी की संस्कृति से पूरी दुनिया वाकिफ है क्यूंकि इसे मोक्ष की नगरी भी कहा जाता है और इसके लिए एक पंक्ति काफी प्रचलित है जिसने भी छुआ वो स्वर्ण हुआ, सब कहें मुझे मैं पारस हूं, मेरा जन्म महाश्मशान मगर मैं जिंदा शहर बनारस हूं तो ऐसे ही जिंदा शहर बनारस में मणिकर्णिका नाम से एक श्मशान घाट है |
दरअसल आपको बता दें कि काशी के इस घाट के बारे में एक मान्यता है कि यहां चौबीसो घंटे चिताएं जलती रहती हैं कहा जाता है की दुनिया इधर से उधर हो जाए, लेकिन यहां चिताओं की अग्नि तबसे जल रही है जब शंकर भगवान की पत्नी माता पार्वती ने श्राप दिया और कहा कि यहां की आग कभी नहीं बुझेगी |

आपको बता दें की हर कोई इस स्थान को लेकर अपनी-अपनी कहानियां सुनाता है और अपने-अपने तरीके से बातें बताता है | लेकिन आज तक किसी को यह नहीं पता कि इस घाट की अग्नि कब बुझेगी परंतु यहां के लोगों का कहना है कि मणिकर्णिका का ऐसा श्राप है कि यहां 24 घंटे आग जलती रहती हैं |

उनका कहना है कि ‘एक बार पार्वती जी स्नान कर रही थी तो उनके कान की बाली कुंड में गिर गई, जिसमें मणि लगी थी और जिसे ढूंढने के लिए काफी जद्दोजहद किया गया था लेकिन उनकी बाली नहीं मिली तो पार्वती माता को इतने में क्रोध आ जाता है और उन्होंने ये श्राप दे दिया कि मेरी मणि नहीं मिली तो ये स्थान हमेशा जलता रहेगा |
तो यही वजह है कि इस स्थान का नाम मणिकर्णिका रखा गया और यहां लोग अपनों का अंतिम संस्कार करने आते हैं | इसके इतिहास के बारे में वहां के लोगों ने अपनी अलग-अलग राय देते है |