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Friday, October 18, 2024

लैपटॉप मोबाइल फोन का ज्यादा इस्तेमाल बना रहा हमें बुड्ढा कम करें इसका इस्तेमाल और हो जाए सावधान

लैपटॉप मोबाइल फोन का ज्यादा इस्तेमाल बना रहा हमें बुड्ढा कम करें इसका इस्तेमाल और हो जाए सावधान

आज की समय में सभी लोग फोन का इस्तेमाल सबसे ज्यादा करते हैं इतना ही नहीं सोशल मीडिया का जमाना होने के कारण सभी लोग सोशल की तमाम उपकरणों का बहुत ज्यादा इस्तेमाल करते हैं दिन में फोन के अलावा लैपटॉप कंप्यूटर टीवी इत्यादि शामिल है, लेकिन क्या आपको पता है कि आपको बुड्ढा बना रहे हैं |

लैपटॉप मोबाइल फोन का ज्यादा इस्तेमाल बना रहा हमें बुड्ढा कम करें इसका इस्तेमाल और हो जाए सावधान
लैपटॉप मोबाइल फोन का ज्यादा इस्तेमाल बना रहा हमें बुड्ढा कम करें इसका इस्तेमाल और हो जाए सावधान

जी हाँ, आपको बता दे की बहुत अधिक मोबाइल स्क्रीन उपयोग को मोटापे और मनोवैज्ञानिक समस्याओं से जोड़ा गया है। अब एक नए अध्ययन ने एक नई समस्या की पहचान की है। मक्खियों पर किये गए इस स्टडी में पता चलता है कि हमारे बुनियादी सेलुलर कार्यों को इन उपकरणों द्वारा उत्सर्जित नीली रोशनी से प्रभावित किया जा सकता है। ये परिणाम फ्रंटियर्स इन एजिंग में प्रकाशित हुए हैं। “टीवी, लैपटॉप और फोन जैसे रोजमर्रा के उपकरणों से नीली रोशनी के अत्यधिक संपर्क से हमारे शरीर में त्वचा और वसा कोशिकाओं से लेकर संवेदी न्यूरॉन्स तक कोशिकाओं की एक विस्तृत श्रृंखला पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है।

आरोपियों के खिलाफ कठोर कार्यवाही किए जाने की मांग की

आपको बता दे की शोधकर्ताओं द्वारा दर्ज किए गए परिवर्तनों से पता चलता है कि कोशिकाएं उप-स्तर पर काम कर रही हैं, और इससे उनकी अकाल मृत्यु हो सकती है, और आगे, उनके पिछले निष्कर्षों की व्याख्या करें कि नीली रोशनी उम्र बढ़ने को तेज करती है। एलईडी डिस्प्ले स्क्रीन जैसे फोन, डेस्कटॉप और टीवी, साथ ही परिवेश प्रकाश में मुख्य रोशनी बन गए हैं, इसलिए उन्नत समाजों में मनुष्य अपने अधिकांश जागने के घंटों के दौरान एलईडी लाइटिंग के माध्यम से नीली रोशनी के संपर्क में आते हैं। मक्खियों और मनुष्यों की कोशिकाओं में संकेत देने वाले रसायन समान होते हैं, इसलिए मनुष्यों पर नीली रोशनी के नकारात्मक प्रभावों की संभावना होती है।

इसके आलवा गिबुल्टोविक्ज़ बताते हैं की हमने मक्खियों पर काफी मजबूत नीली रोशनी का इस्तेमाल किया, मनुष्य कम तीव्र प्रकाश के संपर्क में हैं, इसलिए सेलुलर क्षति कम नाटकीय हो सकती है। इस अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि मानव कोशिकाओं से जुड़े भविष्य के शोध को यह स्थापित करने की आवश्यकता है कि नीली रोशनी के अत्यधिक संपर्क के जवाब में मानव कोशिकाएं ऊर्जा उत्पादन में शामिल मेटाबोलाइट्स में समान परिवर्तन दिखा सकती हैं ।

इन सबके अलावा भी हमें समय-समय पर बताया जाता है कि सोशल मीडिया मानना की हमारे विकास में उपयोगी है लेकिन फिर भी यह मानव के शारीरिक शरीर को खराब कर रहा है, उसका ज्यादा इस्तेमाल हमारी सेहत के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं है, परंतु उसके बाद भी लोग इसका इस्तेमाल करना कम नहीं करते ।

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