मुहर्रम को लेकर शिया समुदाय के लोगों ने शहर में मातम जगहा निकाला जुलूस, जुलूस के दौरान भारी संख्या में पुलिस बल तैनात
हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में मोहर्रम के महीने के दसवें दिन शिया समुदाय के लोग छुरी का मातम मनाते हैं,जिसे को आशूरा भी कहा जाता है। आज मुहर्रम के 10 वें दिन अलीगढ मैं मुस्लिम समुदाय के लोगो ने ताजिये को साथ लेकर जुलूस निकाला वही कर्बला में ताजिये को दफन कर दिया जाएगा
आप को बतादे कि पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे हसन हुसैन की याद में मुस्लिम समाज के लोगों ने अलीगढ मैं जगा-जागा मोहर्रम निकाले। साथ ही मोहर्रम निकालने के दौरान पूरे शहर में हसन हुसैन या हुसैन की सदाएं गूंजती रहीं।आप को बता ते चले कि इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक 1400 साल पहले कर्बला की लड़ाई में पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे (बेटी का बेटा,नाती) हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 साथी शहीद हुए थे। ये जंग इराक के कर्बला में हुई थी। जंग में इमाम हुसैन और उनके परिवार के छोटे-छोटे बच्चों को भूखा प्यासा शहीद कर दिया गया था। इसलिए मोहर्रम माह में सबीले लगाई जाती है।पानी पिलाया जाता है।भूखों को खाना खिलाया जाता है। इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक,कर्बला की लड़ाई में इमाम हुसैन ने इंसानियत को बचाया था।
इसलिए मोहर्रम को इंसानियत का महीना माना जाता है। इमाम हुसैन की शहादत और कुर्बानी की याद में मोहर्रम मनाया जाता है। इमाम हुसैन की शहादत की याद में ताज़िया और जुलूस निकाले जाते हैं।