32 C
Mathura
Monday, June 2, 2025

सभी वैदिक ग्रंथों का प्रतीक है श्रीमद्भागवत गीता

जीएल बजाज में श्रद्धाभाव से मनी गीता जयंती

मथुरा। शुक्रवार को गीता जयंती के पावन अवसर पर जीएल बजाज ग्रुप आफ इंस्टीट्यूशंस मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना के बाद करपात्री द्विवेदी तथा आचार्य अभिषेक शुक्ला ने छात्र-छात्राओं को श्रीमद्भागवत गीता के महात्म्य की विस्तार से जानकारी दी। इन विद्वतजनों ने कहा कि हिन्दू धर्म को समझने के लिए जीवन में कम से कम एक बार श्रीमद्भागवत गीता अवश्य पढ़नी चाहिए क्योंकि यह सभी ग्रंथों का प्रतीक है।
श्रीमद्भागवत गीता के महात्म्य की जानकारी देने से पहले करपात्री द्विवेदी, आचार्य अभिषेक शुक्ला, प्रो. नीता अवस्थी तथा छात्र-छात्राओं ने सम्पूर्ण गीता का पाठ किया। विद्वतजनों ने प्राध्यापकों, छात्र-छात्राओं तथा अन्य कर्मचारियों को बताया कि गीता में मानव जीवन से जुड़ी सभी प्रकार की समस्याओं को बहुत ही सरल भाषा में समझाया गया है। सच कहें तो गीता सभी वैदिक ग्रंथों का प्रतीक है। महाभारत युद्ध के दौरान भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो जीवन का सार बताया था, वही श्रीमद्भागवत गीता है।
विद्वतजनों ने कहा कि श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए गीता के उपदेश आज के समय में भी लोगों को अपने जीवन में गहरे अवसाद से छुटकारा दिलाने में मदद करते हैं, इसीलिए हिंदुओं के साथ ही अन्य धर्मों के लोग भी गीता को अपने जीवन में अपनाते हैं। दरअसल, श्रीमद्भागवत गीता के उपदेश सभी को धार्मिकता, नैतिकता और जीवन के मूल सिद्धांतों से अवगत कराते हैं। विद्वतजनों ने कहा कि श्रीमद्भागवत गीता साक्षात श्रीकृष्ण का स्वरूप है। गीता में श्रीकृष्ण ने जीवन के कई रहस्यों से पर्दा उठाया है। उन्होंने न केवल गीता के माध्यम से धर्म के विषय में बताया है बल्कि ज्ञान, बुद्धि, जीवन में सफलता इत्यादि के विषय में भी मनुष्य को अवगत कराया है। भगवान श्रीकृष्ण गीता में बताते हैं कि धरती पर हर एक मनुष्य को अपने कर्मों के अनुरूप ही फल प्राप्त होता है। इसलिए उन्हें केवल अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए और फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। जो व्यक्ति अच्छे कर्मों में लिप्त रहता है, भगवान उसे वैसा ही फल प्रदान करते हैं। साथ ही जिसे बुरे कर्मों में आनंद आता है, उसे उसी प्रकार का जीवन दंड के रूप में भोगना पड़ता है। गीता में बताया गया है कि मनुष्य की इन्द्रियां बहुत चंचल स्वभाव की होती हैं। वह आसानी से गलत आदतों को अपना लेती हैं, इसी वजह से व्यक्ति को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जीवन को सुखमय बनाना है तो हमें इन्द्रियों पर खासकर अपने चित्त अर्थात मन पर विशेष नियंत्रण रखना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि चंचल मन के कारण कई प्रकार के बुरे कर्मों में लिप्त होने का खतरा बढ़ जाता है। संस्थान की निदेशक प्रो. नीता अवस्थी ने कहा कि श्रीकृष्ण ने धनुर्धर अर्जुन को महाभारत के युद्धभूमि में बताया था कि व्यक्ति के लिए क्रोध विष के समान है। वह न केवल शत्रुओं की संख्या बढ़ाता है बल्कि इससे मानसिक तनाव में भी वृद्धि होती है। इसके साथ गीता में बताया गया है कि क्रोध से भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है, जिससे चिंतन शक्ति पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए अपने क्रोध पर काबू रखना ही व्यक्ति के लिए सबसे अच्छा उपाय है। इस धार्मिक कार्यक्रम का संचालन विशाल सक्सेना, भूमिका शर्मा, प्रिया ठाकुर, थनेश गोला तथा प्रियंका शर्मा ने किया।

Latest Posts

संस्कृति विवि के विद्यार्थियों का प्रसिद्ध कंपनियों में हुआ चयन

संस्कृति विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने हाल ही में अपनी प्रतिभा के दम पर देश और दुनियां की प्रसिद्ध कंपनियों में नौकरियां हासिल की हैं।...

संस्कृति विवि में स्थापित होगी अनरियल लैब और ग्रीन स्टूडियो

Unreal Lab and Green Studio will be established in Sanskriti University अनरियल एज संस्कृति विश्वविद्यालय में चार करोड़ रुपये की लागत से अत्याधुनिक अनरियल इंजन...

संस्कृति विश्वविद्यालय के 60 विद्यार्थियों को मिली नौकरी

संस्कृति विश्वविद्यालय के 60 विद्यार्थियों का श्रीराम जानकी हॉस्पिटल स्टाफिंग सर्विस कंपनी द्वारा कैंपस प्लेसमेंट किया गया है। विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा विद्यार्थियों को उनके...

काम को व्यवस्थित और आसान बनाता है डाटा स्ट्रक्चरः सचिन कुमार

Data structure makes work organized and easy: Sachin Kumar मथुरा। सूचना क्रांति के युग में बिना डाटा कोई काम नहीं चल सकता। डाटा संरचना डाटा...

संस्कृति विवि में प्रतिरक्षा शक्ति बढ़ाने के बताए सहज उपाय

Simple ways to increase immunity power told in Sanskriti University मथुरा। संस्कृति विश्वविद्यालय में "प्रतिरक्षा शक्ति बढ़ाने: समग्र दृष्टिकोण" विषय पर एक सेमिनार का आयोजन...

Related Articles