महाविद्वान महाशिवभक्त रावण एक रूप अनेक
हमारे धर्मग्रन्थों के अनुसार रावण एक शक्तिशाली बलवान योध्दा होंने के साथ प्रकांण्ड विद्वान भी था, वह प्रसिध्द सिध्दयोगी पुलत्स्य का नाती, वैदिक विद्वान विश्रवा का पुत्र था, महर्षि विश्रवा ने दैत्यकन्या कैकसी से विवाह किया।
आर्य लोग इस विवाह से अनजान थे, जानकारी होंने पर आर्यों ने इस खानदान का बहिष्कार कर दिया जिसके कारण रावण क्रूर कर्मी बन गया, वैसे तो रावण के भी अनेक अवतार हुए, कभी अभिशप्त राजा भानुप्रताप के रुप में, तो कभी भगवान विष्णु के अभिशप्त पार्षद जय विजय के रूप में देखा जाता है। प्रताप भानु के रूप में वह रामके पूर्वज, अज,दिलीप, दशरथ से भी युध्द कर चुका था।
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गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी उसके चारित्रिक महत्वता को लिखा है। जब रावण सीताजी का अपहरण करने वन को आया, तो सर्व प्रथम माता सीता की बंदना करता है।
“मनमहुँ चरन बंदि सुख माना |”
अन्यग्रन्थों में भी इसका मूलसार मिलता है। जिसमें उल्लेख किया गया है कि रावण ने माँ सीता की बंदना करते हुए कहा है, “हे माता तुम केवल श्री रामकी ही पत्नी नहीं, तुमतो जगत जननी हो, राम और रावण,दोनों तुम्हारी संतान हैं। माता अपने योग्य संतान की चिंता नहीं करती, राम तो सर्वथा योग्य हैं। उनके उध्दार की तुम्हें चिंता नहीं है, मैं ही सर्वथा अयोग्य हूँ, मेरा उध्दार कर दो माँ,यह तभी संभव होगा जब तुम मेरेसाथ लंका चलोगी।”
यहाँ तमिल रामकथा रचनाकार कम्ब ने लिखा है कि रावण ने माता सीता के शरीर का स्पर्श भी नहीं किया। बल्कि अपहरण के लिए, वह समूचा भू खंड उखाड़ कर लंका ले आया, जो लक्षँमण की रेखा से मुक्त थी, जिसपर माँ सीता खड़ी थीं।उसी भूखंड के साथ, माता सीता को अशोक नामक वन में लाकर मुक्ति की भावना से स्थापित किया।