नवरात्रे शुरू होने वाले हैं और नवरात्रों की शुरुआत में एक शख्स को सबसे ज्यादा याद किया जाता है और वह शख्स है महाराजा अग्रसेन |
क्योंकि इनका जन्म पहले नवरात्रे को हुआ था, तो चलिए आज बात करते हैं महाराजा अग्रसेन के बारे में कि आखिर वह कौन थे |
दरअसल आपको बता दें कि महाराजा अग्रसेन जी का जन्म द्वापर युग के अंत और कलयुग के शुरुआत के मध्य आश्विन शुक्ल प्रतिपदा यानि शारदीय नवरात्रि के पहले दिन को हुआ था |
उन्होंने महाराजा अग्रसेन प्रताप नगर के राजा वल्लभ और रानी भगवती के यहाँ ज्येष्ठ पुत्र के रूप में जन्म लिया था |
उनका जन्म सूर्यवंशी क्षत्रिय कुल में हुआ था और इनके अनुज भाई के नाम शूरसें था | जिन्होंने बाद में अग्रवाल समाज के साथ-साथ अग्रोहा धाम की स्थापना की थी |
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इतना ही नहीं आपको बता दूँ कि बचपन से ही अग्रेसन जी बड़े ही दयालु और करुणामय स्वभाव वाले व्यक्ति रहे थे और इसी कारण इनके मन में मनुष्य के साथ-साथ पशु-पक्षीयों के लिए भी दया का भाव था | उन्होंने इसी भाव के चलते धार्मिक पूजा-अनुष्ठानों में पशु बलि को गलत बताते हुए अपना क्षत्रिय धर्म छोड़ कर वैश्य धर्म को अपना लिया |
इसके अलावा उनकी शादी के बारे में बात करें तो उन्होंने दो शादीया की थी उनकी पहली शादी नागराज की बेटी माधवी से और दूसरी शादी नागवंशी की पुत्री सुंदरावती से हुई थी |उनकी पहली शादी बड़ी लोकप्रिय थी क्यूंकि वह शादी स्वयंवर के जरिए हुई थी |
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यहां राजा नागराज के आयोजित एक स्वयंवर में दूर-दराज से राजा-महाराजाओं के साथ-साथ स्वयं स्वर्ग लोक से इन्द्र देवता भी आए थे परंतु राजकुमारी माधवी ने महाराजा अग्रसेन को अपने लिए वर में चुना लिया था |
इसके बाद उन्होंने लगभग 100 सालों तक राज़ किया था और फिर अपने राज्य में सब कुछ कर के राजा अग्रसेन ने अपना पूरा राज्य अपने ज्येष्ठ पुत्र विभु को सौंपकर स्वयं वन में तपस्या करने चले गए | वे अपने न्यायप्रियता, दयालुता के कारण इतिहास के पन्नों में एक भगवान एक अलग ही नाम दर्ज करा गए |
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इसके अलावा इनके नाम की जयंती भी मनाई जाती है जो की आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा अर्थात् नवरात्री के पहले दिन मनाई जाती हैं |
आज भी पूरी दुनिया में उन्हें बड़े सम्मान की दृष्टि से याद किया जाता है उनके ऊपर कई किताबें लिखी गई है जो आज के टाइम में हिंदुस्तान में पढ़ाई जाती है |