राम जन्म होते ही लगे जय श्रीराम के नारे
कोशाम्बी अभी न्यूज़ (मुजफ्फर ) करारी कस्बे में चल रही ऐतिहासिक रामलीला के दूसरे दिन मंगलवार को श्रीराम जन्म, ऋषि आगमन व तड़का वध लीला का मंचन किया गया। मसहूर बुलदेलखण्डी कलाकारों ने लीलाओं का मंचन कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। राम जन्म होते ही पूरा प्रांगण जय श्रीराम के नारों से गुंजायमय रहा।
गुरु वशिष्ठ अपने आश्रम में ध्यान मुद्रा में बैठे थे। इसी बीच राजा दशरथ का प्रवेश होता है गुरुदेव उनसे आगमन का कारण पूछते हैं।इस पर राजा दशरथ कहते हैं गुरुदेव मेरा चौथापन आ गया है। मगर अब तक कोई संतान नहीं है। इस पर गुरुदेव उन्हें संतानोत्पत्ति के लिए यज्ञ कराने का निर्देश देते हैं। शृंगी ऋषि यज्ञ कराते हैं। यज्ञ सफल होने पर अग्निदेव प्रकट होते हैं और द्रव्य देकर राजा दशरथ से कहते हैं कि इसे अपनी रानियों को दे दीजिए, इसका सेवन करने से संतान अवश्य होगी। राजा दशरथ के द्रव्य देने के बाद रानियां उन्हें ग्रहण करती हैं। द्रव्य ग्रहण करने के पश्चात भगवान विष्णु प्रकट होते हैं और कौशल्या हतप्रभ सी उनके दर्शन करती हैं।इस बीच मंच पर पार्श्व संगीत भए प्रकट कृपाला, दीनदयाला, कौसल्या हितकारी… गूंजने लगता है।
पूरा दृश्य उल्लासित नजर आता है। माता कौशल्या कहती हैं- हे तात आप यह विराट रूप त्याग कर अत्यंत प्रिय बाललीला कीजिये। विष्णु जी अंतर्ध्यान होते हैं। फिर बच्चों के रोने की आवाजें सुनाई देती हैं और खुशी का संगीत बजने लगता है।रामजन्म के समाचार से राजा दशरथ सहित संपूर्ण अयोध्या में खुशी छा जाती है सुमंत महाराज दशरथ को बताते हैं कि महाराज प्रजा में हर्ष व्याप्त है, लोगों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं है। प्रजावासी नाचते-गाते हैं। अवधपुरी में आनंद हुआ है। राजकुमारों का जन्म हुआ है.घर-घर दीप जले मंगल द्वार सजे।
इसी बीच महर्षि विश्वामित्र का आगमन अयोध्या में होता है। महर्षि विश्वामित्र चक्रवर्ती नरेश राजा दशरथ से यज्ञ की रक्षा के लिए राम और लक्ष्मण को मांगने उनके महल पहुंचे। महर्षि ने राजा दशरथ से कहा कि राजन ताड़का नाम की राक्षसी से पूरा समाज भयभीत है। वह जप तप यज्ञ इत्यादि नहीं करने देती है। इसलिए यज्ञ की रक्षा के लिए राम और लक्ष्मण को लेने आया हूं। यह सुनते ही राजा दशरथ दुखी हो गए और कहा कि मुनिवर मेरे राम व लक्ष्मण बहुत कोमल व सुकुमार हैं, भला ताड़का जैसी राक्षसी का कैसे वध करेंगे? ऋषिवर मैं स्वयं आपके यज्ञ की रक्षा के लिए चलूंगा, लेकिन राम व लक्ष्मण को नहीं जाने दूंगा। राजा दशरथ की बात सुन महर्षि विश्वामित्र क्रोधित हो गए और बोले कि मैं तुम्हारी अयोध्या नगरी को भस्म कर दूंगा। उसी समय वशिष्ठ मुनि आते हैं और विश्वामित्र को शांत कराते हुए राजा दशरथ को समझाते हैं कि राम लोक कल्याण के लिए अवतरित हुए हैं। इसलिए इनको महर्षि विश्वामित्र के साथ जाने दीजिए। राजा दशरथ राम व लक्ष्मण को विश्वामित्र के साथ विदा करते हैं। भगवान राम रास्ते मे ही ताड़का नाम की राक्षसी का वध करते हैं। ताड़का का वध होते ही रामलीला प्रांगण जय श्रीराम के नारे से गुंजायमान हो उठा। इस मौके पर कमेटी अध्यक्ष संजय जायसवाल, प्रबंधक,ज्ञानू शर्मा,महामंत्री संजीत मोदनवाल, संरक्षक बच्चा कुशवाहा, ट्रष्टि व संयोजक रमेश शर्मा, मेला प्रबंधक रमेश केशरवानी, मीडिया प्रभारी गनेश वर्मा, रामानन्द वर्मा शुशील मोदनवाल,श्याम सुन्दर केशरवानी,जगदीश केशरवानी लाल जी वर्मा,पंजक शर्मा,कल्लू राम चौरसिया सहित सैकड़ों दर्शक उपस्थित रहे।