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Tuesday, September 17, 2024

संस्कृति विवि में हुआ अंतर्राष्ट्रीय लोक संस्कृति सम्मेलन

संस्कृति विश्वविद्यालय और भारतीय संस्कृति सेवार्थ न्यास के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय लोक संस्कृति सम्मेलन में फिजी के डिप्टी हाई कमिश्नर नीलेश कुमार ने कहा कि यहां से 11 हजार किलोमीटर दूर फिजी के दिल में आज भी भारत बसता है। भारत और फिजी में बहुत सारी समानताएं हैं। इसकी वजह पांच पीढ़ी पहले यहां आए 60 हजार भारतवासी हैं।
संस्कृति विश्वविद्यालय के संतोष मैमोरियल आडिटोरियम में आयोजित इस सम्मेलन में फिजी के उप उच्चायुक्त ने कहा कि यद्यपि फिजी यहां से बहुत दूर है लेकिन भाषा और संस्कृति के कारण हम आपस में जुड़े हुए हैं। हमारे बीच अनेक समझौते(एमओयू) और अनेक विकास की योजनाएं संचालित हैं। उन्होंने बताया कि फिजी में हिंदी बहुतायत में बोली जाती है। हिंदुओं के त्योहार होली, दिवाली, रामनवमी आदि बड़े जोर-शोर से मनाई जाती है। आज समय है कि भारत के लोग फिजी को जानें क्योंकि हमारे पूर्वज भारत से जो संस्कृति लाए थे वह आज फिजी में जीवंत है।
सम्मेलन के कोर्डिनेटर डा. सतीश कुमार शास्त्री ने सम्मेलन के लिए संस्कृति विवि का आभार व्यक्त करते हुए बताया कि अंग्रेजों ने वर्षों पूर्व लुभावने सपने दिखाकर, अंगूठा लगवाकर अनेक भारतियों को फिजी लेजाकर बसाया था। उन्हें घर भी नहीं आने दिया गया और वे अपनों की याद कर रोते हुए कठिन परिस्थियों में यहां रहे। फिजी में भयावह नजारा था। खाने को सिर्फ सूखा अनाज था और चारों तरफ घास ही घास थी। वर्षों तक भारतीयों ने यहां का दुख भरा जीवन झेला और धीरे-धीरे यहां रहने के आदी हो गए, लेकिन अपनी संस्कृति को नहीं छोड़ा। अभी हाल ही में फिजी में 12वां विश्व हिंदी सम्मेलन हुआ था। वहां 200 रामायण मंदिर हैं।
सम्मेलन का प्रारंभ भारतीय परंपरा के अनुसार अतिथियों के दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.एमबी चेट्टी ने कार्यक्रम का उद्देश्य बताते हुए स्वागत भाषण दिया। इस अवसर फिजी से आए कलाकारों एवं अतिथियों का पटुका ओढ़ाकर एवं स्मृति चिह्न देकर विश्वविद्यालय की सीईओ डा. मीनाक्षी शर्मा ने सम्मान किया। अंत में संस्कृति सेंटर फार एप्लाइड पालॉटिकल स्टडीज के डाइरेक्टर डा. रजनीश त्यागी ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन अनुजा गुप्ता ने किया। कार्यक्रम में डा.उदयवीर सिंह तेवतिया प्रमुख रूप से मौजूद रहे। सम्मेलन की व्यवस्था में संस्कृति विवि के डा. डीएस तौमर, डा. रतीश शर्मा आदि ने सहयोग दिया।

संस्कृति विश्वविद्यालय और भारतीय संस्कृति सेवार्थ न्यास के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय लोक संस्कृति सम्मेलन में फिजी के डिप्टी हाई कमिश्नर नीलेश कुमार ने कहा कि यहां से 11 हजार किलोमीटर दूर फिजी के दिल में आज भी भारत बसता है। भारत और फिजी में बहुत सारी समानताएं हैं। इसकी वजह पांच पीढ़ी पहले यहां आए 60 हजार भारतवासी हैं।
संस्कृति विश्वविद्यालय के संतोष मैमोरियल आडिटोरियम में आयोजित इस सम्मेलन में फिजी के उप उच्चायुक्त ने कहा कि यद्यपि फिजी यहां से बहुत दूर है लेकिन भाषा और संस्कृति के कारण हम आपस में जुड़े हुए हैं। हमारे बीच अनेक समझौते(एमओयू) और अनेक विकास की योजनाएं संचालित हैं। उन्होंने बताया कि फिजी में हिंदी बहुतायत में बोली जाती है। हिंदुओं के त्योहार होली, दिवाली, रामनवमी आदि बड़े जोर-शोर से मनाई जाती है। आज समय है कि भारत के लोग फिजी को जानें क्योंकि हमारे पूर्वज भारत से जो संस्कृति लाए थे वह आज फिजी में जीवंत है।
सम्मेलन के कोर्डिनेटर डा. सतीश कुमार शास्त्री ने सम्मेलन के लिए संस्कृति विवि का आभार व्यक्त करते हुए बताया कि अंग्रेजों ने वर्षों पूर्व लुभावने सपने दिखाकर, अंगूठा लगवाकर अनेक भारतियों को फिजी लेजाकर बसाया था। उन्हें घर भी नहीं आने दिया गया और वे अपनों की याद कर रोते हुए कठिन परिस्थियों में यहां रहे। फिजी में भयावह नजारा था। खाने को सिर्फ सूखा अनाज था और चारों तरफ घास ही घास थी। वर्षों तक भारतीयों ने यहां का दुख भरा जीवन झेला और धीरे-धीरे यहां रहने के आदी हो गए, लेकिन अपनी संस्कृति को नहीं छोड़ा। अभी हाल ही में फिजी में 12वां विश्व हिंदी सम्मेलन हुआ था। वहां 200 रामायण मंदिर हैं।
सम्मेलन का प्रारंभ भारतीय परंपरा के अनुसार अतिथियों के दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.एमबी चेट्टी ने कार्यक्रम का उद्देश्य बताते हुए स्वागत भाषण दिया। इस अवसर फिजी से आए कलाकारों एवं अतिथियों का पटुका ओढ़ाकर एवं स्मृति चिह्न देकर विश्वविद्यालय की सीईओ डा. मीनाक्षी शर्मा ने सम्मान किया। अंत में संस्कृति सेंटर फार एप्लाइड पालॉटिकल स्टडीज के डाइरेक्टर डा. रजनीश त्यागी ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन अनुजा गुप्ता ने किया। कार्यक्रम में डा.उदयवीर सिंह तेवतिया प्रमुख रूप से मौजूद रहे। सम्मेलन की व्यवस्था में संस्कृति विवि के डा. डीएस तौमर, डा. रतीश शर्मा आदि ने सहयोग दिया।

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