संस्कृति विवि में आयोजित कार्यशाला में विशेषज्ञों द्वारा दीं गई उच्च गुणवत्ता का बासमती पैदा करने से होने वाली कमाई सम्बन्धित महत्वपूर्ण जानकारियां
संस्कृति विवि में आयोजित कार्यशाला में विशेषज्ञों द्वारा दीं गई उच्च गुणवत्ता का बासमती पैदा करने से होने वाली कमाई सम्बन्धित महत्वपूर्ण जानकारियां:संस्कृति विश्वविद्यालय और एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्टस एक्सपोर्ट डवलपमेंट अथोर्टी ऑफ इंडिया (एपिडा) के सम्मलित सहयोग से संस्कृति स्कूल आफ एग्रीकल्चर द्वारा आयोजित कार्यशाला में जिले के किसानों को बासमती की खेती और मार्केटिंग के बारे में उपयोगी जानकारी दी गईं।
उच्च गुणवत्ता का बासमती पैदा करके मिल सकती है अच्छी कीमत
कार्यशाला में विशेषज्ञों ने किसानों को बताया कि वे कैसे अपनी बासमती की उम्दा पैदावार कर सकते हैं और कैसे उसे एक्सपोर्ट कर अधिक मूल्य अर्जित कर सकते हैं।
संस्कृति स्कूल आफ एग्रीकल्चर द्वारा आयोजित कार्यशाला में मुख्य अतिथि डा. रीतेश शर्मा को संस्कृति विवि के चांसलर सचिन गुप्ता द्वारा स्मृति चिह्न प्रदान किया गया
कार्यशाला में मुख्य अतिथि एपिडा के प्रिंसिपल साइंटिस्ट प्लांट ब्रीडिंग(बासमती एक्सपोर्ट डवलपमेंट फाउंडेशन एपीडा) डा.रीतेश शर्मा ने किसानों को बताया कि बासमती की खेती सिर्फ हिन्दुस्तान और पाकिस्तान में होती है। पाकिस्तान में सिर्फ 14 जिलों में पाकिस्तान की खेती होती जबकि हमारे यहां सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही 30 जिलों में इसकी खेती हो रही है। वैसे अपने देश के सात राज्यों में बासमती की खेती होती है। उन्होंने कहा कि इसके बावजूद जरूरत के अनुपात में बासमती की खेती बहुत कम है।
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डा. रीतेश ने किसानों को बताया कि बासमती की फसल में कौन-कौन सी बीमारियां होती हैं, उन बीमारियों को कैसे पहचानेंगे और उनका सहजता से निदान कैसे करेंगे। उन्होंने कहा कि अधिकतर किसान जानकारी के अभाव में बिनी जरूरत के कीटनाशकों का प्रयोग कर उसे जहरीला बना देते है और फिर अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उसकी कीमत नहीं मिलती या फिर वो बिकता नहीं। ऐसा सिर्फ जानकारी के अभाव में और हमारे यहां चलने वाली प्रतिद्वंद्विता के कारण हो रहा है।
उन्होंने किसानों से कहा कि भले ही उत्पादन कम हो लेकिन जो भी हो वह उच्च गुणवत्ता का होगा तो उसकी कीमत भी अच्छी मिलेगी और बिकेगा भी आसानी से। उन्होंने कीटनाशकों के अनावश्यक प्रयोग से बचने को कहा और बताया कि वे कैसे एपिडा के माध्यम से अपने खाद्यान्न का निर्यात कर सकते हैं।
कार्याशाला में मौजूद संस्कृति विवि के चांसलर सचिन गुप्ता ने कहा कि संस्कृति विवि की सोच है कि हम अपने आसपास के किसानों की खेती को उपयोगी और गुणवत्ता युक्त बनाने में मदद करें और उनको अपने खाद्यान्न की अच्छी कीमत दिलाने के कार्य में सहायक सिद्ध हों। इसी क्रम में यह कार्यशाला आयोजित की गई है।
अपने विद्यार्थियों के साथ-साथ किसानों को भी जागरूक करने के लिए संस्कृति विवि पहले भी ऐसे आयोजन करता रहा है और आगे भी ऐसे आयोजन होते रहेंगे। विवि के चांसलर सचिन गुप्ता ने किसानों को संस्कृति आयुर्वेदिक अस्पताल, इन्क्युबेशन सेंटर, स्टार्टअप से संबंधित जानकारी देते हुए कहा कि हमारे किसान और उनके बच्चे इनका लाभ उठाएं और अपने जीवन को खुशहाल बनाएं।
कृषि विज्ञान केंद्र मथुरा के एसोसिएट प्रोफेसर डा. विपिन ने किसानों को कीटनाशकों के प्रयोग से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां देते हुए उनके दुष्परिणामों से परिचित कराया। कार्याशाला में डा. एसके सचान पूर्व डाइरेक्टर एक्सटेंशन एंड एचओडी एंटोमोलाजी, सरदार वल्लभ भाई पटेल विवि मेरठ, कृषि विज्ञान केंद्र मथुरा के हेड प्रोफेसर डा. वाई के शर्मा ने भी किसानों को महत्वपूर्ण जानकारिया उपलब्ध कराईं। जिले के प्रगतिशील किसान सुधीर अग्रवाल ने किसानों को कार्यशाला की आवश्यकता और उसके होने वाले लाभों से परिचित कराया। कार्यशाला में मौजूद किसानों ने विशेषज्ञों से उनके सामने आने वाली समस्याओं को लेकर अनके सवाल पूछे जिनका विशेषज्ञों ने संतुष्टिपूर्ण समाधान किया। कार्यक्रम के अंत में संस्कृति स्कूल आफ एग्रीकल्चर के डीन डा. रजनीश त्यागी ने आगंतुक अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया।