अब सोने निवेशकों को करना चाहिए ये क्योंकि महंगाई ने उड़ा दिया सोने का रंग
इस बार यह वर्ष आम वर्षों की तरह नहीं है क्यूंकि रूस-यूक्रेन संकट के चलते इस वर्ष दुनियाभर में महंगाई चरम पर पहुंची तो शेयर बाजार भी काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा | महंगाई पर काबू पाने के लिए दुनियाभर के सेंट्रल बैंकों ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी की | इतिहास पर नजर डालें तो जब-जब ऐसे हालात बने हैं तब-तब सोना एक सेफ हेवन बना है परंतु इस बार ऐसा नहीं हुआ |हमने देखा कि इस बार ग्लोबल मार्केट्स गिरने के बावजूद सोने की कीमतों में तेजी नहीं आई | सोना भी बाजारों के साथ गिरता ही रहा |
दरअसल आपको बता दे की हाल ही में सोने ने खुद को प्रूव भी किया है कि लोग उसे सेफ हेवन क्यों कहते हैं | क्यूंकि मार्च-अगस्त 2020 के बीच में सोने की कीमत 1471 डॉलर प्रति औंस से बढ़कर 2063 डॉलर पहुंच गई थी | यह वो समय था जब दुनियाभर के बाजारों पर कोरोना का कहर बरप रहा था | इसी साल फरवरी से मार्च के बीच जब रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया तब भी हमने इसे 1797 डॉलर से बढ़कर 2050 डॉलर तक जाते देखा |
1980 में इसकी कीमत 711 डॉलर के रिकॉर्ड पर पहुंची और फिर लम्बे समय तक गिरावट देखी गई | इसके बाद 2006 में सोने की कीमतों ने एक बार फिर नया हाई बनाया | सोने का वोलाटाइल बिहेवियर ऐसा है कि निवेशकों द्वारा इसके बारे में ठीक-ठीक अंदाजा लगाना थोड़ा मुश्किल हो गया है | परंतु एक बात तो तय है कि यह निवेशकों के पेशेंस को जरूर परखता है |
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तो अब ऐसे में निवेशकों को यह समझ लेना चाहिए की यह ऐसा समय है जब आपको शोर-शराबे को नहीं सुनना है और अपने वित्तीय लक्ष्यों को ध्यान में रखना है | वैश्विक अर्थव्यवस्था पर COVID-19 के सभी दुष्प्रभावों के हटने में कितना समय लगेगा, इस बारे में शायद ही कोई विशेषज्ञ सही साबित हो | यदि मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए ब्याज दरों को और बढ़ाया जाता है, तो यह अर्थव्यवस्था में मांग प्रभावित होगी, कॉर्पोरेट आय घटेगी और स्टॉक की कीमतें भी गिरेंगी |
इसके साथ ही ऊंची ब्याज दरों का प्रभाव तुरंत देखने को नहीं मिलेगा |मुद्रास्फीति को शांत होने में कुछ समय लग सकता है और इससे एसेट्स की कीमतों में और अस्थिरता आ सकती है | इन कारकों पर एक निवेशक का कोई नियंत्रण नहीं होता है, इसलिए अपने वित्तीय लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करना सबसे अच्छा है |