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Saturday, April 19, 2025

दिल से कैनवास तक – विशेष बच्चों की कला का वैश्विक संगम

दुनिया भर में समावेशी शिक्षा और रचनात्मकता को बढ़ावा देने के प्रयास जारी हैं, और भारत के बरेली शहर में हुआ “दिल से कैनवास तक” कार्यक्रम इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल के रूप में उभरा। इस आयोजन ने यह साबित किया कि कला की कोई भाषा नहीं होती, और यह हर बच्चे को आत्म-अभिव्यक्ति और आत्मनिर्भरता की राह दिखा सकती है।
जब कला ने सीमाएँ लांघीं
पंचशूल गनर्स द्वारा द टाइम्स ऑफ इंडिया और फोकस नेत्रालय के सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम का उद्देश्य विशेष रूप से सक्षम बच्चों की रचनात्मकता और कल्पनाशक्ति को प्रोत्साहित करना था। दुनिया भर में यह माना जाता है कि कला और शिक्षा साथ मिलकर बच्चों के संपूर्ण विकास में अहम भूमिका निभाते हैं। यह आयोजन उसी सोच का हिस्सा था, जिसमें 23 विद्यार्थियों ने अपनी कला के रंगों से अनूठी कहानियाँ रचीं।
ग्लोबल विजन, लोकल एक्शन
कार्यक्रम के दौरान बच्चों ने चित्रकला, शिल्प निर्माण और खेलों में भाग लिया। उन्होंने अपनी कल्पनाओं को रंगों में ढाला, जिससे यह सिद्ध हुआ कि कला अभिव्यक्ति का सबसे प्रभावी माध्यम है, जो किसी भी भौगोलिक या सामाजिक बाधा को पार कर सकती है। यह प्रयास वैश्विक स्तर पर हो रही उन पहलों के समान है, जहाँ विशेष जरूरतों वाले बच्चों को सृजनात्मकता के माध्यम से मुख्यधारा में लाने की कोशिश की जा रही है।
आशा स्कूल, बरेली के प्रधानाचार्य डॉ. विवेक सिंह ने इस पहल पर जोर देते हुए कहा,
“विशेष रूप से सक्षम बच्चों के लिए कला सिर्फ एक गतिविधि नहीं, बल्कि उनकी आत्म-अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त साधन है। हम इस आयोजन के लिए पंचशूल गनर्स के आभारी हैं, जिन्होंने हमारे विद्यार्थियों को यह अनमोल अवसर प्रदान किया।”
विश्व स्तर पर, अमेरिका, यूरोप और एशिया में समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं। “दिल से कैनवास तक” जैसी पहलें भारत में भी इस दिशा में एक ठोस प्रयास हैं, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समावेश, समानता और कला के महत्व को उजागर करती हैं।

दिल से कैनवास तक – विशेष बच्चों की कला का वैश्विक संगम

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