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Friday, September 27, 2024

भाजपा शिक्षण प्रकोष्ठ ने पं.दीनदयाल के जीवन से प्रेरणा लेने का किया आह्वान

भाजपा शिक्षण प्रकोष्ठ ने पं.दीनदयाल के जीवन से प्रेरणा लेने का किया आह्वान

मथुरा। भारतीय जनता पार्टी शिक्षण संस्थान प्रकोष्ठ द्वारा विगत बुधवार को संस्कृति विश्वविद्यालय के सभागार में एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती मनाई गई। इस मौके पर वक्ताओं ने उपस्थित श्रोताओं को पं.दीनदयाल उपाध्याय के विचारों की उपयोगिता और महत्व पर प्रकाश डालते हुए उनके जीवन से प्रेरणा लेने के लिए प्रेरित किया।
कार्यक्रम की संयोजिका भारतीय जनता पार्टी शिक्षण संस्थान प्रकोष्ठ की क्षेत्रीय संयोजक डा. मीनाक्षी शर्मा ने श्रोताओं को बताया कि पण्डित दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चिन्तक और संगठनकर्ता थे। वे भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए देश को एकात्म मानववाद नामक विचारधारा दी। वे एक समावेशित विचारधारा के समर्थक थे जो एक मजबूत और सशक्त भारत चाहते थे। राजनीति के अतिरिक्त साहित्य में भी उनकी गहरी अभिरुचि थी। उन्होंने विद्यार्थियों को उनके जीवन से प्रेरणा लेने का आह्वान किया l
राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच के राष्ट्रीय मंत्री डा. रजनीश त्यागी ने दीनदयालजी के कठिन जीवन संघर्ष पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितम्बर 1916 को धनकिया नामक स्थान, जयपुर अजमेर रेलवे लाइन के पास [राजस्थान] हुआ था। उनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय था, नागला चंद्रभान दीनदयाल जी का पैतृक गांव था, और नगला चंद्रभान (फरह, मथुरा) के निवासी थे। दो वर्ष बाद दीनदयाल के भाई ने जन्म लिया। पिता भगवती प्रसाद ने बच्चों को ननिहाल भेज दिया। दीनदयाल अभी 3 वर्ष के भी नहीं हुये थे, कि उनके पिता का देहान्त हो गया। पति की मृत्यु से माँ रामप्यारी को अपना जीवन अंधकारमय लगने लगा। 8 अगस्त 1924 को उनका भी देहावसान हो गया। उस समय दीनदयाल 7 वर्ष के थे। 1926 में नाना चुन्नीलाल भी नहीं रहे। 1931 में पालन करने वाली मामी का निधन हो गया। 18 नवम्बर 1934 को भाई शिवदयाल ने भी उपाध्यायजी का साथ सदा के लिए छोड़कर दुनिया से विदा ले ली। 1935 में स्नेहमयी नानी भी स्वर्ग सिधार गयीं। 19 वर्ष की अवस्था तक उपाध्याय जी ने मृत्यु-दर्शन से गहन साक्षात्कार कर लिया था। 8वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उपाध्याय जी ने कल्याण हाईस्कूल, सीकर, राजस्थान से दसवीं की परीक्षा में बोर्ड में प्रथम स्थान प्राप्त किया। 1937 में पिलानी से इंटरमीडिएट की परीक्षा में पुनः बोर्ड में प्रथम स्थान प्राप्त किया। 1939 में कानपुर के सनातन धर्म कालेज से बी०ए० की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की।ी से एम०ए० करने के लिए सेंट जॉन्स कालेज, आगरा में प्रवेश लिया और पूर्वार्द्ध में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुये। बीमार बहन रामादेवी की शुश्रूषा में लगे रहने के कारण उत्तरार्द्ध न कर सके। बहन की मृत्यु ने उन्हें झकझोर कर रख दिया। मामाजी के बहुत आग्रह पर उन्होंने प्रशासनिक परीक्षा दी, उत्तीर्ण भी हुये किन्तु अंगरेज सरकार की नौकरी नहीं की। 1941 में प्रयाग से बी०टी० की परीक्षा उत्तीर्ण की। बी०ए० और बी०टी० करने के बाद भी उन्होंने नौकरी नहीं की। 1937 में जब वह कानपुर से बी०ए० कर थे, अपने सहपाठी बालूजी महाशब्दे की प्रेरणा से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आये। संघ के संस्थापक डॉ० हेडगेवार का सान्निध्य कानपुर में ही मिला। उपाध्याय जी ने पढ़ाई पूरी होने के बाद संघ का दो वर्षों का प्रशिक्षण पूर्ण किया और संघ के जीवनव्रती प्रचारक हो गये। आजीवन संघ के प्रचारक रहे।
डा. केके पाराशर ने भी इस मौके पर अपने विचार व्यक्त किए। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ब्रज प्रांत के सह संयोजक डीएस तोमर ने कार्यक्रम का संचालन किया।

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