संस्कृति विवि के विद्यार्थियों को विद्वानों ने बताई राम-कृष्ण की महत्ता
मथुरा। संस्कृति विश्वविद्यालय के कैंपस-1 स्थित सभागार में उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान लखनऊ द्वारा आयोजित
‘श्रीराम-श्री कृष्ण: जन चेतना एवं लोक हित के आदर्श’ संवाद एवं संगोष्ठी में दूर दराज से आए हिंदी के लेखकों और कवियों ने विद्यार्थियों को आज के परिदृश्य में श्रीराम और श्रीकृष्ण के कृतित्व और उनके संदेशों की महत्ता बताते हुए कहा कि राम को जानना है तो तुलसी की रामायण को पढ़िए और कृष्ण को जानना है तो गीता को पढ़िए आपको अपनी हर समस्या, सवाल का उत्तर मिल जाएगा। कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथि वक्ताओं, कवियों ने मां सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्ज्वल कर किया। कार्यक्रम का संचालन कर रहे इलाहाबाद के विधि विभाग के प्रवक्ता और जानेमाने कवि शैलेष गौतम ने अपनी सुगठित कविताओं और वक्तव्य के माध्यम से कहा कि भारत की ऐसी मातृत्व शक्ति को प्रणाम जिन्होंने राम और कृष्ण जैसे युग पुरुषों को जन्म दिया। यहां मौजूद युवा शक्ति जिसके पास देश की दशा और दिशा दोनों बदलने की सामर्थ्य है। उन्होंने कहा कि यह सही है कि राम का चित्र देखने में बहुत सुंदर है लेकिन पूजा उनके चरित्र की होती है। भगवान श्री कृष्ण ने पर्वत एक अंगुली पर उठा लिया था लेकिन सुरों को साधने के लिए बांसुरी पर दसों अंगुली लगानी पड़ीं। उन्होंने राम की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि, राम युग से परे राम युगबोध हैं, राम सीधे सरल राम अनुरोध हैं, राम पथ हैं सुगम मूल्य आदर्श के, राम हर युग में रावण का प्रतिरोध हैं।
मथुरा के युवा कवि हरिंद्र नरवार ने कहा कि, भर सके रंग राम के चरित्र में..राम वन में गए तो राम बन गए। उन्होंने राम और कृष्ण के चरित्रों को अपनी रचनाओं में ढालकर विद्यार्थियों को उनके संदेशों पर अमल करने की प्रेरणा दी। ओज के युवा कवि ने अपनी कविताओं से उपस्थित विद्यार्थियों में जोश भर दिया। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से कहा कि अगर चंदवरदाई जैसे कवि नहीं होते तो राजा को युद्ध के लिए प्रेरित कौन करता। उन्होंने ब्रजभाषा में अपनी रचनाओं से विद्यार्थियों पर एक अमिट छाप छोड़ी। राजस्थान के डा. पद्म गौतम ने कहा कि आप सभी सौभाग्यशाली हैं जो संस्कृति की गोद में बैठकर विद्याध्यन कर रहे हैं। राम और कृष्ण हमारे प्रतिमान हैं, जिनको दूषित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने अपनी रचना के माध्यम से कहा कि, राजनीत का खेल खेलें, न जाने रघुराई को बड़े हिमालय से बढ़कर हैं, अतल सिंधु से गहरे राम। टूंडला फिरोजाबाद से आए लटूरी सिंह लट्ठ ने अपनी रचनाओं के माध्यम से विद्यार्थियों को अपनी संस्कृति, परंपराओं का पालन करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि जबतक राम और कृष्ण को आप पढ़ेंगे नहीं तब आप कैसे जानेंगे। उन्होंने कहा कि आप इनके जीवन से प्रेरणा लें।
इससे पूर्व संस्कृति विवि के डा. रजनीश त्यागी ने आगंतुक वक्ताओं, कवियों को पटुका ओढ़ाकर और स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया। कार्यक्रम की व्यवस्था और संयोजन स्टूडेंट वेलफेयर के डीन डा. डीएस तोमर, डा.दुर्गेश वाधवा ने की।