विजय दिवस पर छलका शहीद के परिजनों का दर्द
हाथरस में कल कारगिल विजय दिवस मनाया जाएगा और शहीदों को नमन किया जाएगा। कारगिल और उसके बाद शैलेश सैन्य अभियान ऑपरेशन रक्षक और ऑपरेशन पराक्रम में हाथरस के भी 21 जवान शहीद हुए। शहीदों के कई परिवारों की यह टीस है कि सरकार ने उनकी कोई आर्थिक सहायता नहीं की। इस अभियान के दौरान शहीद हुए गांव मीतई के जहूर खान के परिजनों का भी यही कहना है। 17 अक्टूबर 2002 को ऑपरेशन पराक्रम के दौरान जहूर खां की शहादत हुई। वह सेना की 4 ग्रेनेडियर में तैनात थे। उनका परिवार लंबे समय से शहर के मोहल्ला नई दिल्ली मधुगाढ़ी में रह रहा है। जहूर खान ने अपनी शहादत के बाद अपनी पत्नी और 6 बच्चों को बिलखते हुए छोड़ा। उनकी पत्नी हाजरा बेगम का कहना है कि उन्हें अपने पति की शहादत पर गर्व है लेकिन सरकार ने उनके परिवार की कोई सुध नहीं ली। वे अपने बच्चों को सेना में भेजना चाहती थी, लेकिन उनके बच्चों को मृतक आश्रित में भी नौकरी नहीं मिल सकी। उन्होंने तमाम अधिकारियों के चक्कर लगाए, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। उनके पति की पेंशन जरूर आती है। इसके अलावा कोई सरकारी इमदाद उन्हें नहीं मिली। उनके बच्चे आज मजदूरी करने को विवश हैं। कोई टेंपो चलाता है तो कोई मजदूरी करता है। हाजरा बेगम का दर्द इतना ही नहीं है। वह कहती हैं कि उनके पति की कब्र गांव मीतई में आगरा रोड पर है। उन्होंने स्मारक बनाने के लिए 60 हजार रुपए खुद खर्च किए, लेकिन इस मार्ग की हालत भी जीना सीन है। इसकी बाउंड्री को तोड़ दिया गया है और एक बदरपुर विक्रेता ने इसके बाहर कब्जा कर लिया है।